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Bajrang Baan lyrics in hindi paath mantra image: बजरंग बाण लिखित में पाठ लिरिक्स

Bajrang Baan lyrics in hindi paath mantra image: बजरंग बाण लिखित में पाठ लिरिक्स

बजरंग बाण : श्री हनुमानजी का परमशक्तीशाली पाठ 

Bajrang Baan Lyrics In Hindi 



        पवनपुत्र श्री हनुमान जी भगवान राम के परम भक्त है. इन्हे भक्तशिरोमणी भी कहा जाता है. बजरंग बली अष्ट सिद्धी और नव निधी के दाता भी है. सारे संसार मे ऐसा कोई भी कार्य नही जो हनुमान जी के आशीर्वाद से पूर्ण ना किया जा सके.  बजरंगबली को प्रसन्न करणे का सबसे सटीक उपाय है बजरंग बाण. बजरंग बाण (Bajrang Baan Lyrics In Hindi) पाठ से आप प्रभू हनुमानजी कि कृपा प्राप्त कर सकते है. 

पौराणिक अद्भुतता का प्रतीक: बजरंग बाण

        पौराणिक कथाओं और भारतीय संस्कृति में श्री हनुमानजी (Shri Hanumanji) एक प्रमुख व्यक्ति हैं। उनकी शक्तिशाली और दिव्य स्वरूप को प्रकट करने के लिए, 'बजरंग बाण' एक प्रसिद्ध पौराणिक मंत्र (Pauranik Mantra) है जो हनुमान भक्तों द्वारा प्रतिदिन पाठ (Pratidin Paath) किया जाता है।

'बजरंग बाण' मंत्र का महत्त्व 

'बजरंग बाण' यह एक शक्तिशाली मंत्र है, जिसे श्री संत तुलसीदास जी (Shree Sant Tulsidas ji) जी द्वारा रचा गया है। यह मंत्र हनुमानजी की शक्ति और कटिबद्धता को जगाने का प्रयास करता है। इस मंत्र को पठने वाले व्यक्ति को शक्ति, सुख, संयम, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। यह मंत्र रोग, बुरी नजर, बाधाएं और कठिनाइयों को दूर करने में सहायक होता है।

'बजरंग बाण' : उपयोग और महत्त्व

'बजरंग बाण' के पाठ को धार्मिक आदत के साथ करने से न सिर्फ मानसिक शक्ति बढ़ती है, बल्कि शारीरिक और आध्यात्मिक उन्नति भी होती है। यह मंत्र भक्ति, ध्यान और अनुशासन की अद्भुत प्रकटि है। बजरंग बाण के पाठ से भक्त अजेयता, सामर्थ्य और संयम का अनुभव करते हैं, जो उन्हें हर कठिनाई को पार करने की शक्ति देता है।

        बजरंग बाण पौराणिक मंत्र है जो हनुमानजी की शक्ति और आदर्शों को प्रतिष्ठित करता है। इसे पाठ करने से भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति, शांति और सुरक्षा की प्राप्ति होती है। इसे नियमित रूप से पठने से व्यक्ति में स्थिरता, धैर्य, और आत्मविश्वास विकसित होता है। बजरंग बाण न केवल मानसिक शक्ति को जगाता है, बल्कि शारीरिक और आध्यात्मिक गुणों का विकास करता है, जो हमारे जीवन को समृद्ध, सफल और सम्पूर्ण बनाता है।
         
 
॥ दोहा ॥
निश्चय प्रेम प्रतीत ते, विनय करें सनमान ।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान ॥

॥ चौपाई ॥
जय हनुमंत संत हितकारी ।
सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ॥०१॥

जन के काज विलम्ब न कीजै ।
आतुर दौरि महा सुख दीजै ॥०२॥

जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा ।
सुरसा बदन पैठि विस्तारा ॥०३॥

आगे जाई लंकिनी रोका ।
मारेहु लात गई सुर लोका ॥०४॥

जाय विभीषण को सुख दीन्हा ।
सीता निरखि परम पद लीन्हा ॥०५॥

बाग उजारी सिंधु महं बोरा ।
अति आतुर यम कातर तोरा ॥०६॥

अक्षय कुमार मारि संहारा ।
लूम लपेट लंक को जारा ॥०७॥

लाह समान लंक जरि गई ।
जय जय धुनि सुर पुर महं भई ॥०८॥

अब विलम्ब केहि कारण स्वामी ।
कृपा करहु उर अन्तर्यामी ॥०९॥

जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता ।
आतुर होय दुख हरहु निपाता ॥१०॥

जै गिरिधर जै जै सुखसागर ।
सुर समूह समरथ भटनागर ॥११॥

ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमन्त हठीले।
बैरिहिं मारू बज्र की कीले ॥१२॥

गदा बज्र लै बैरिहिं मारो ।
महाराज प्रभु दास उबारो ॥१३॥

ॐ कार हुंकार महाप्रभु धावो ।
बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो ॥१४॥

ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं  हनुमंत कपीसा ।
ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा ॥१५॥

सत्य होहु हरि शपथ पाय के ।
रामदूत धरु मारु धाय के ॥१६॥

जय जय जय हनुमंत अगाधा ।
दु:ख पावत जन केहि अपराधा ॥१७॥

पूजा जप तप नेम अचारा।
नहिं जानत कछु दास तुम्हारा ॥१८॥

वन उपवन, मग गिरि गृह माहीं ।
तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं ॥१९॥

पांय परों कर जोरि मनावौं ।
यहि अवसर अब केहि गोहरावौं ॥२०॥

जय अंजनि कुमार बलवन्ता ।
शंकर सुवन वीर हनुमंता ॥२१॥

बदन कराल काल कुल घालक ।
राम सहाय सदा प्रति पालक ॥२२॥

भूत प्रेत पिशाच निशाचर ।
अग्नि बेताल काल मारी मर ॥२३॥

इन्हें मारु तोहिं शपथ राम की ।
राखु नाथ मरजाद नाम की ॥२४॥

जनकसुता हरि दास कहावौ ।
ताकी शपथ विलम्ब न लावो ॥२५॥

जय जय जय धुनि होत अकाशा ।
सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा ॥२६॥

चरण शरण कर जोरि मनावौ ।
यहि अवसर अब केहि गौहरावौं ॥२७॥

उठु उठु चलु तोहिं राम दुहाई ।
पांय परौं कर जोरि मनाई ॥२८॥

ॐ चं चं चं चं चपल चलंता ।
ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता ॥२९॥

ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल ।
ॐ सं सं सहमि पराने खल दल ॥३०॥

अपने जन को तुरत उबारो ।
सुमिरत होय आनन्द हमारो ॥३१॥

यह बजरंग बाण जेहि मारै ।
ताहि कहो फिर कौन उबारै ॥३२॥

पाठ करै बजरंग बाण की ।
हनुमत रक्षा करैं प्राण की ॥३३॥

यह बजरंग बाण जो जापै ।
तेहि ते भूत प्रेत सब कांपे ॥३४॥

धूप देय अरु जपै हमेशा ।
ताके तन नहिं रहै कलेशा ॥३५॥

॥ दोहा ॥
प्रेम प्रतीतहि कपि भजै, सदा धरैं उर ध्यान ।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्घ करैं हनुमान ॥

सियावर रामचंद्र की जय 
पवनसुत हनुमान की जय 

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