संत कबीर दासजी के दोहे जीवन परिचय : Kabir das jivan parichay dohe hindi english meaning
संत कबीर दासजी के दोहे जीवन परिचय
Kabir Das Jivan Parichay Dohe Hindi English Meaning
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Kabir Dohe : sai itna dijiye
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Sai itna digiye, jame kutumb samaye,
Mai bhi bhookha na rahoo, sadhu na bhookha jay
साईं इतना दीजिये, जामे कुटुंब समाये |
मैं भी भूखा न रहूँ, साधू न भूखा जाए |
भावार्थ: Kabir das ji kahate hai कबीर दास जी कहते हैं कि हे प्रभु मुझे ज्यादा धन और संपत्ति नहीं चाहिए, मुझे केवल इतना चाहिए जिसमें मेरा परिवार अच्छे से खा सके| मैं भी भूखा ना रहूं और मेरे घर से कोई भूखा ना जाये|
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Kabir Dohe : guru govind dou khade
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Guru Govind Dou Khade, kake lagu paay,
Balihari Guru Aapne, Govind Diyo Milay ॥
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पॉंय |
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय॥
भावार्थ: कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि अगर हमारे सामने गुरु और भगवान दोनों एक साथ खड़े हों तो आप किसके चरण स्पर्श करेंगे? गुरु ने अपने ज्ञान से ही हमें भगवान से मिलने का रास्ता बताया है इसलिए गुरु की महिमा भगवान से भी ऊपर है और हमें गुरु के चरण स्पर्श करने चाहिए|
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Kabir Dohe : sab dharti kagaz karu
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(3)
Sab Dharti Kagaj Karu, Lekhani Sab Vanraj,
Sat Samudra ki Masi Karu, Guru Gun Likha n Jay ॥
सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज |
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए |
भावार्थ: अगर मैं इस पूरी धरती के बराबर बड़ा कागज बनाऊं और दुनियां के सभी वृक्षों की कलम बना लूँ और सातों समुद्रों के बराबर स्याही बना लूँ तो भी गुरु के गुणों को लिखना संभव नहीं है|
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Kabir Dohe : aisi vani boliye
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(4)
Aisi Wani Boliye, Man ka Aapa Khoy,
Auran Ko Shital Kare, Aaphu Shital Hoy ॥
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए |
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि इंसान को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो सुनने वाले के मन को बहुत अच्छी लगे| ऐसी भाषा दूसरे लोगों को तो सुख पहुँचाती ही है, इसके साथ खुद को भी बड़े आनंद का अनुभव होता है|
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Kabir Dohe : bada bhaya to kya bhaya
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(5)
Bada Bhaya to kya Bhaya, Jaise ped Khajoor,
Pandhi ko Chaya Nahi, Fal lage ati door ॥
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर |
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि खजूर का पेड़ बेशक बहुत बड़ा होता है लेकिन ना तो वो किसी को छाया देता है और फल भी बहुत दूरऊँचाई पे लगता है| इसी तरह अगर आप किसी का भला नहीं कर पा रहे तो ऐसे बड़े होने से भी कोई फायदा नहीं है|
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Kabir dohe : Nindak Niyare Rakhiye
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(6)
Nindak Niyare Rakhiye, Angan kuti chavaye,
Bin pani sabun bina, Nirmal kare suhay ॥
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए |
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि निंदकहमेशा दूसरों की बुराइयां करने वाले लोगों को हमेशा अपने पास रखना चाहिए, क्यूंकि ऐसे लोग अगर आपके पास रहेंगे तो आपकी बुराइयॉं आपको बताते रहेंगे और आप आसानी से अपनी गलतियां सुधार सकते हैं| इसीलिए कबीर जी ने कहा है कि निंदक लोग इंसान का स्वभाव शीतल बना देते हैं|
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Kabir das dohe - Bura Jo Dekhan Mai chala
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(7)
Boora jo dekhan mai chala, bura na miliya koy,
Jo man dekha aapna, muzhse bura na koy ॥
जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय |
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि मैं सारा जीवन दूसरों की बुराइयां देखने में लगा रहा लेकिन जब मैंने खुद अपने मन में झॉंक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई इंसान नहीं है| मैं ही सबसे स्वार्थी और बुरा हूँ भावार्थात हम लोग दूसरों की बुराइयां बहुत देखते हैं लेकिन अगर आप खुद के अंदर झॉंक कर देखें तो पाएंगे कि हमसे बुरा कोई इंसान नहीं है|
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Kabir ke dohe in hindi : Jin Khoja tin Paiya
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(8)
Jin Khoja tin paiya, gahare pani paith,
Mai bapura boodan dara, raha kinare bhaith ||
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ
भावार्थ: जो लोग लगातार प्रयत्न करते हैं, मेहनत करते हैं वह कुछ ना कुछ पाने में जरूर सफल हो जाते हैं| जैसे कोई गोताखोर जब गहरे पानी में डुबकी लगाता है तो कुछ ना कुछ लेकर जरूर आता है लेकिन जो लोग डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रहे हैं उनको जीवन पर्यन्त कुछ नहीं मिलता|
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Kabir das dohe : Dukh me sumiran sab kare
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(9)
Dukh me sumiran sab kare, Sukh me kare na koy,
Jo Sukh me Sumiran kare, To dhookh kaye ko hoy ॥
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय |
भावार्थ: दुःख में हर इंसान ईश्वर को याद करता है लेकिन सुख में सब ईश्वर को भूल जाते हैं| अगर सुख में भी ईश्वर को याद करो तो दुःख कभी आएगा ही नहीं|
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Kabir saheb ke dohe : Mati Kahe Kumbhar se
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(10)
Mati kahe kumhar se, Tu kya ronde moy,
Ek din aisa aayega, main rondungi tohe ॥
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे |
भावार्थ: जब कुम्हार बर्तन बनाने के लिए मिटटी को रौंद रहा था, तो मिटटी कुम्हार से कहती है तू मुझे रौंद रहा है, एक दिन ऐसा आएगा जब तू इसी मिटटी में विलीन हो जायेगा और मैं तुझे रौंदूंगी|
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Kabir das ki bani : Pothi pad pad jag muaa
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(11)
Pothi pad pad jag muaa, Pandit bhaya na koy,
Dhai aakhar prem ka, pade to pandit hoy ||
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय |
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय |
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि लोग बड़ी से बड़ी पढाई करते हैं लेकिन कोई पढ़कर पंडित या विद्वान नहीं बन पाता| जो इंसान प्रेम का ढाई अक्षर पढ़ लेता है वही सबसे विद्वान् है|
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Kabir Dohe - chalti chakki dekh kar
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(12)
Chalti chakki dekh ke, Diya Kabira roy,
Do patan ke bich me, sabut bacha na koy ॥
चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये |
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए |
भावार्थ: चलती चक्की को देखकर कबीर दास जी के आँसू निकल आते हैं और वो कहते हैं कि चक्की के पाटों के बीच में कुछ साबुत नहीं बचता|
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Kabir Dohe : Rat gawayi soy ke
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(13)
Rat gawayi soy ke, diwas gawaya khay,
Hira janm amol sa, kodi badle jay ||
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय |
हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय |
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि रात को सोते हुए गँवा दिया और दिन खाते खाते गँवा दिया| आपको जो ये अनमोल जीवन मिला है वो कोड़ियों में बदला जा रहा है|
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Kabir Dohe : Tinaka Kabhu na nindiye
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(14)
Tinaka kabhu na nindiye, jo pav tale hoy,
Kabhu ud aakhon pade, pir ghaneri hoy ||
तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पॉंव तले होय |
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय |
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि तिनके को पॉंव के नीचे देखकर उसकी निंदा मत करिये क्यूंकि अगर हवा से उड़के तिनका आँखों में चला गया तो बहुत दर्द करता है| वैसे ही किसी कमजोर या गरीब व्यक्ति की निंदा नहीं करनी चाहिए|
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Kabir Dohe - dhire dhire re mana
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(15)
Dhire Dhire re mana, dhire sab kuch hoy,
Mali sinche sau khada, rutu aaye fal hoy ||
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय |
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय |
भावार्थ: कबीर दास जी मन को समझाते हुए कहते हैं कि हे मन! दुनिया का हर काम धीरे धीरे ही होता है| इसलिए सब्र करो| जैसे माली चाहे कितने भी पानी से बगीचे को सींच ले लेकिन वसंत ऋतू आने पर ही फूल खिलते हैं|
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English hindi dohe : Kami krodhi lalachi
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(16)
Kami Krodhi Lalachi, inse bhakti naa hoy,
Bhakti kare doi surama, Jati varn kul khoy ||
भक्ति करे कोई सुरमा, जाती बरन कुल खोए |
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि कामी, क्रोधी और लालची, ऐसे व्यक्तियों से भक्ति नहीं हो पाती| भक्ति तो कोई सूरमा ही कर सकता है जो अपनी जाति, कुल, अहंकार सबका त्याग कर देता है|
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Hindi english dohe :
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(17)
Boora jo dekhan mai chala, boora na miliya koy,
Jo dil khoja aapna, muzhase boora na koy ||
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय|
भावार्थ: जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला| जब मैंने अपने मन में झॉंक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है|
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Kabir dohe hindi english
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(18)
Pothi pad pad jag muaa, pandit bhaya na koy,
Dhai aakhar prem ka, pade to pandit hoy ||
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय|
भावार्थ: बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके| कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, भावार्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा|
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sant kabir dohe : kal kare so aaj kar
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Kaal kare so aaj kar, Aaj kare so ab,
Pal me parlay hoyegi, bahuri karega kab ॥
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब |
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब |
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि हमारे पास समय बहुत कम है, जो काम कल करना है वो आज करो, और जो आज करना है वो अभी करो, क्यूंकि पलभर में प्रलय जो जाएगी फिर आप अपने काम कब करेंगे|
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jati na pucho sadhu ki
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(20)
Jati na pucho sadhu ki, pooch lijiye ghyan,
Mol karo talwar ka, pada rahan do myan ||
जाती न पूछो साधू की, पूछ लीजिये ज्ञान |
मोल करो तलवार का, पड़ा रहने दो म्यान |
भावार्थ: साधु से उसकी जाति मत पूछो बल्कि उनसे ज्ञान की बातें करिये, उनसे ज्ञान लीजिए| मोल करना है तो तलवार का करो म्यान को पड़ी रहने दो|
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Kabir ke dohe : ati ka bhala na bolna
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(21)
Ati ka bhala naa bolana, ati ki bhali na choop,
Ati ka bhala naa barasna, ati ki bhali na dhoop ||
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप
भावार्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि ज्यादा बोलना अच्छा नहीं है और ना ही ज्यादा चुप रहना भी अच्छा है जैसे ज्यादा बारिश अच्छी नहीं होती लेकिन बहुत ज्यादा धूप भी अच्छी नहीं है|
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kabir dohe : bada hua to kya hua jaise ped
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(22)
Bada hooa to kya jaise ped khajoor,
Panchi ko chaya nahi, fal lage ati door ||
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर|
पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर |
भावार्थ: खजूर के पेड़ के समान बड़ा होने का क्या लाभ, जो ना ठीक से किसी को छॉंव दे पाता है और न ही उसके फल सुलभ होते हैं|
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Kabir ke dohe english
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(23)
Te din gaye akarath hi, sangat bhai na sang,
Prem bina pashu jiwan, Bhakti bina Bhagwant ||
ते दिन गए अकारथ ही, संगत भई न संग |
प्रेम बिना पशु जीवन, भक्ति बिना भगवंत |
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि अब तक जो समय गुजारा है वो व्यर्थ गया, ना कभी सज्जनों की संगति की और ना ही कोई अच्छा काम किया| प्रेम और भक्ति के बिना इंसान पशु के समान है और भक्ति करने वाला इंसान के ह्रदय में भगवान का वास होता है|
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famous Kabir das dohe
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(24)
Sadhu aisa chahiye jaisa sup subhay,
Sar sar ko gahi rahai, thotha dei uday ||
साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय|
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय|
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि एक सज्जन पुरुष में सूप जैसा गुण होना चाहिए| जैसे सूप में अनाज के दानों को अलग कर दिया जाता है वैसे ही सज्जन पुरुष को अनावश्यक चीज़ों को छोड़कर केवल अच्छी बातें ही ग्रहण करनी चाहिए|
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famous Kabir das dohe
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(25)
Unche kul ka janmiya, Karni unchi na hoy,
Suwarn Kalash sura bhaya, Sadhu ninda hoy ||
ऊँचे कुल का जनमिया, करनी ऊँची न होय |
सुवर्ण कलश सुरा भरा, साधू निंदा होय |
भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि ऊँचे कुल में जन्म तो ले लिया लेकिन अगर कर्म ऊँचे नहीं है तो ये तो वही बात हुई जैसे सोने के लोटे में जहर भरा हो, इसकी चारों ओर निंदा ही होती है|
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